प्रस्तुतकर्ता अनुपमा पाठक at २२ नवम्बर २०१०
"मैं" की लड़ाई थमेगी...!
" मेरे होने
न होने से
क्या अंतर है
पड़नेवाला!
वैसे ही तो
होता रहेगा
बारी बारी से
अँधेरा उजाला!
जिंदगी
एक पल के लिए भी
न थमेगी...
अगले ही क्षण
फिर
महफ़िल जमेगी! "
ये एहसास
जीते जी
हो जाये,
तो क्या कहना!
सुकून देगा
ठहरी हुई
संतप्त
जलधारा का बहना!
अहंकार
मिट जाएगा
"मैं" की लड़ाई थमेगी...
कुछ बादल बरसेंगे
फिर
निश्चित बात बनेगी!
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