Friday, December 23, 2011

प्रत्युत्तर में तू कब तक चुप रहने वाली है ..





प्रस्तुतकर्ता अनुपमा पाठक at २७ नवम्बर २०१०


प्रत्युत्तर में तू कब तक चुप रहने वाली है!



प्रतीक्षारत नयनों में
आशा की लाली है!
क्या हुआ जो दूर तक
फैली रात काली है!!


हम तुम्हें बहुत चाहते हैं,
ऐ! जिंदगी...
प्रत्युत्तर में तू कब तक
चुप रहने वाली है!
तुम्हे हंसना भी होगा
गाना भी होगा...
सुर ताल में बज रही
समय की ताली है!


सारे सितारे नयनों में
जो समा लिए...
आसमान का विस्तार
कितना खाली है!
तू झूम रही है धरा पर
तो देख...
कितना मंत्रमुग्ध सा
चमन का माली है!


मानव मस्तिष्क
जाने क्या ढूँढ रहा...
अंतरिक्ष की कैसी
परिकल्पनाएं पाली है!
हृदय अब भी तो
माटी से ही है जुड़ा...
चन्दन पुष्पों से सजी
पूजा की थाली है!


प्रतीक्षारत नयनों में
आशा की लाली है!
क्या हुआ जो दूर तक
फैली रात काली है!!


2 comments:

  1. कहीं दूर नहीं वो आशा की लाली ..!
    'क्या हुआ जो दूर तक
    फैली रात काली है ..
    प्रतीक्षारत नयनों में
    आशा की लाली है!'

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