Friday, December 23, 2011

अँधेरा है तो क्या हुआ.. दीप जलते हैं ..





प्रस्तुतकर्ता अनुपमा पाठक at १० नवम्बर २०१०


अँधेरा है तो क्या हुआ.. दीप जलते हैं!


एक मुस्कुराहट क्या कुछ नहीं खिला देती
जुदा जुदा राहियों को मंजिल है मिला देती!


चलते हुए कितने ही दीप जलते हैं
सुन्दर सपने.. हृदयों में पलते हैं
साझे सपनों का इन्द्रधनुष है खिला देती
अठखेलियाँ करती हवा लौ को है हिला देती!


वसुधा की गोद में क्या क्या खेल चलते हैं
समय निर्धारित है अवसान का.. फिर भी हम मचलते हैं
क्षणिकता के सौंदर्य को कीर्ति है दिला देती
जलती हुई दीपमालिका बुझी आस है खिला देती!


यूँ ही नहीं अरमान पलते हैं
अँधेरा है तो क्या हुआ.. दीप जलते हैं
गंतव्य स्पष्ट हो तो संकल्पशक्ति जीत है दिला देती
जिजीविषा मुरझाती कली को भी है खिला देती!


जुदा जुदा राहियों को मंजिल है मिला देती
एक मुस्कुराहट क्या कुछ नहीं खिला देती!

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