See Profile of Anupama Pathak: http://www.blogger.com/profile/09963916203008376590
Friday, January 20, 2012
सुबह जरा कुछ पल प्रार्थना के जी लें...!
सुबह जरा कुछ पल प्रार्थना के जी लें...!
प्रस्तुतकर्ता अनुपमा पाठक at 17 जुलाई 2010
यह कविता भी आंसुओं के साथ लिखी गयी अभी अभी..... प्रेरणा है कहीं से जो आंसुओं में भी प्रार्थना के फूल और एक भली सी मुस्कान वाली सुन्दर छवि जड़ रही है:
रुदन कभी कभी अदृश्य वेदना से भी अनुप्राणित होता है....अव्याख्येय....ऐसे में कविता आंसू पोछने हेतु रुमाल का काम करती है! कहीं एक पल के लिए भी अगर शब्दों को पढ़ कोई मुस्कुराये तो कविता ने अपना काम कर लिया....
सुबह जरा कुछ पल प्रार्थना के जी लें
सुधापान का अवसर होगा कल जरूर,
आज खुशी-खुशी हलाहल पी लें
इतना विस्तार मिले
धरती छोटी पड़ जाए
कविता हमारी नील गगन की
सीमा तय कर आए!
क्षितिज पर जहाँ
धरती और गगन मिले
वहाँ एक रोज़ मेरी कविता
पूर्ण सौंदर्य के साथ खिले!!
संकुचित मानसिकता से मुक्त है राही अगर,
तो दूर तलक जाता है...
हृदय कैसे-कैसे अद्भुत सफ़र तय कर आता है...
धरा का सारा स्नेह आँचल में समेट जी लें
सुधापान का अवसर होगा कल जरूर,
आज खुशी-खुशी हलाहल पी लें
इतना प्यार मिले
दामन छोटा पड़ जाए
जितना पायें औरों से
उससे कहीं बढ़कर प्यार लुटाए!
हर निर्मल हृदय की
मनोकामनाएं सच हो खिलें
भले कुछ टहनियां टूटें,
पर जड़े कभी न हिलें!!
सुबह जरा कुछ पल प्रार्थना के जी लें
सुधापान का अवसर होगा कल जरूर,
आज खुशी-खुशी हलाहल पी लें ..
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment